ब्लैक होल के अदभुत रहस्य

ब्लैक होल क्या है





दोस्तों आपने पौराणिक गाथाओं में दानवों के बारे में  सुना होगा जिनकी भूख इतनी विशाल होती थी कि वह गांव के गांव खा जाते थे ।ब्रह्मांड में भी कुछ ऐसे खगोलीय पिंड हैं जिनकी भूख उन दानवों के समान अमिट होती है ।इनका गुरुत्वाकर्षण बल इतना प्रबल होता है कि वह अपने पास आने वाले सभी खगोलीय पिंडों को निगल लेते हैं ।यहां तक कि प्रकाश भी उनके गुरुत्वाकर्षण बल से बचकर नहीं निकल पाता जिसके कारण यह दिखाई नहीं देते इसलिए इन खगोलीय पिंडो को ब्लैक होल यानि की कृष्ण विवर कहा जाता है ।आज के इस पोस्ट में हम ब्लैक होल के बारे में विस्तार से आपको बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

ब्रह्मांड में मौजूद ब्लैक होल नाम का यह दानव एक अत्यधिक घनत्व वाला पिंड होता है। इस में अत्यधिक कम क्षेत्र में इतना ज्यादा द्रव्यमान होता है, कि उससे उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण किसी भी अन्य बल से शक्तिशाली हो जाता है और उसके प्रभाव से प्रकाश भी नहीं बच पाता। ब्लैक होल की उपस्थिति का प्रस्ताव 18 वीं सदी में उस समय ज्ञात गुरुत्वाकर्षण के नियमों के आधार पर दिया गया था। इसके अनुसार किसी पिंड का जितना ज्यादा द्रव्यमान होगा या उसका आकार जितना छोटा होगा उस पिंड की सतह पर उतना ही ज्यादा गुरुत्वाकर्षण बल महसूस होगा ।यह तो बुनियादी बातें हैं।

आइए जानते हैं कि ब्लैक होल का निर्माण कैसे होता है ब्लैक होल तब बनता है ।जब कोई बड़ा तारा बूढ़ा हो जाता है या उसमें मौजूद ज्वलनशील पदार्थ यानी हाइड्रोजन खत्म हो जाता है ।यह तारे विशाल आकार के होते हैं उनका गुरुत्वाकर्षण बल भी उतना ही विशाल होता है यह बल तारे की सामग्री को उसके केंद्र की ओर निरंतर खींचता रहता है लेकिन तारे के केंद्र में हाइड्रोजन रहता है जो तारीख की भीषण गर्मी के कारण फैलता जाता है उसके फैलने के कारण जो दाब उत्पन्न होता है ।वह तारे के गुरुत्वाकर्षण बल का प्रतिरोध करता है इसलिए तारा पूर्णता अंदर की ओर कभी नहीं धसता लेकिन एक समय आता है जब तारे के अंदर मौजूद हाइड्रोजन खत्म हो जाता है और गुरुत्वाकर्षण बल को रोकने के लिए हाइड्रोजन गैस का दाब मौजूद नहीं रहता और जैसे हवा निकल जाने पर गुब्बारा जिस तरह सिकुड़ जाता है। उसी तरह तारा भी सिकुड़ जाता है। यदि तारा लगभग सूर्य के आकार का हुआ तो वह सिकुड़ कर लगभग 100 किलोमीटर ब्यास वाले पिंड में बदल जाता है। इस से अधिक छोटे आकार में उसे दबाने के लिए उस तारे में पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण बल नहीं होता अब उस तारे को व्हाइट ड्वार्फ या न्यूट्रॉन तारा कहा जाता है ।वह अरबों वर्षों तक जीवित रह कर धीरे-धीरे अपनी ऊष्मा और ऊर्जा खोता रहता है।

 पर यदि यह तारा हमारे सूर्य से लगभग 3 से 5 गुना बड़ा हुआ तो उसका गुरुत्वाकर्षण बल इतना ताकतवर होता है कि इस तरह उसके अंदर की ओर धंसने की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है और एक वक्त ऐसा आता है जब पूरा का पूरा तारा धूल के एक कण से भी छोटे आकार का हो जाता है ,और वह पूर्णता गायब ही हो जाता है ऐसी अवस्था में पहुंचे तारे को ब्लैक होल कहते हैं। इस तारे के अणु परमाणु  गुरुत्वाकर्षण बल के कारण इतने पास पास होते हैं कि उसका गुरुत्वाकर्षण बल मूल तारे से कई  गुना बढ़ जाता है। अब जब आप ब्लैक होल के निर्माण के बारे में समझ गए हैं तो एक सवाल आपके मन में उठ रहा होगा कि जब ब्लैक होल दिखाई ही नहीं देता और प्रकाश तक को बाहर नहीं आने देता तो वैज्ञानिकों को उसके अस्तित्व के बारे में कैसे पता चला। जिस तरह हम हवा को देख नहीं पाते पर हवा के कारण झूम रहे वृक्षों को देखकर समझ जाते हैं की हवा चल रही है ।उसी प्रकार ब्लैक होल के आसपास के खगोलीय पिंडों की गति में मौजूद असमानताओं को देख कर हम अनुमान लगा सकते हैं ,कि आस-पास ब्लैक होल यानी कि श्याम विवर मौजूद है हबल जैसे दूरबीनों ने ब्रह्मांड के ऐसे दृश्य हमें भेजे हैं जिनमें दिखाई दे रहा है कि कुछ तारों की सामग्री किसी अदृश्य बिंदु की ओर खिंची चली जा रही है ऐसा संभवतह किसी ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रताप से हो रहा है ।वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारी आकाशगंगा के केंद्र में भी एक ब्लैकहोल है जो आसपास के तारों को निगलकर निरंतर बड़ा होता जा रहा है। महान भौतिकशास्त्री अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने साधारण सापेक्षतावाद के सिद्धांत के द्वारा हमारे गुरुत्वाकर्षण बल के ज्ञान को उन्नत किया उन्होंने सिद्ध किया कि प्रकाश एक सीमित गति अर्थात लगभग 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से चलता है ।इसका अर्थ यह है कि स्पेस और टाइम एक दूसरे से संबंधित है 1915 में उन्होंने सिद्ध किया की ब्लैक होल जैसे भारी पिंड अपने आसपास के चार आयाम वाले स्पेस और टाइम को विकृत करते हैं यह विकृति हमें गुरुत्वाकर्षण के रूप में दिखाई देती है ।इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं अगर किसी चादर पर एक भारी लोहे की गेंद को रख दें तो वह चादर को विकृत कर देगा अब अगर उसके पास कंचों को बिखरा दें तो वह उस गेंद की परिक्रमा करते हुए अन्त में गेंद के पास पहुंच जाते हैं। यहां चादर स्पेस है और एक भारी पिंड और चादर में आए विकृति गुरुत्वाकर्षण बल इससे हमें यह भी पता चलता है कि ब्लैक होल के बाहरी कक्षा में समयभी धीमा हो जाता है ।




अब अगला सवाल आपके मन में उठ रहा होगा कि ब्लैक होल के अंदर क्या होता है इसका एक साधारण सा उत्तर है कि हमें नहीं पता क्योंकि इसका गुरुत्वाकर्षण बल प्रकाश तक को खींच लेता है इसलिए यह दिखाई ही नहीं देता ।हम केवल यह जानते हैं कि इस के बाहर क्या होता है ।जब तक हम इवेंट होराइजन तक ना पहुंच जाए जो कि एक ऐसा पॉइंट होता है जहां से वापसी संभव नहीं होता इवेंट होराइजन से बाहर आने के लिए हमारी एस्केप वेलोसिटी प्रकाश की रफ्तार से ज्यादा होनी चाहिए जो कि असंभव है ।

एस्केप वेलोसिटी क्या होती है?

अगर आप एस्केप वेलोसिटी को नहीं समझते तो आप इस उदाहरण से समझ सकते हैं।पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में निकालने के लिए उपग्रह को 11 किलोमीटर प्रति सेकंड से अधिक रफ्तार से छोड़ना पड़ता है ।अब मान लीजिए कि आप को सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में निकालना है सूर्य पृथ्वी से कई गुना भारी है और उसका गुरुत्वाकर्षण बल भी पृथ्वी से कई गुना ज्यादा है इस बल को निरस्त कर के उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए उपग्रह को 618 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार छोड़ना  पड़ेगा अब एक ब्लैक होल की कल्पना कीजिए जो सूर्य से भी कई गुना भारी होता है ।यानी उसका गुरुत्वाकर्षण बल भी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल से काफी ज्यादा होगा इसका मतलब यह हुआ कि उससे किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए उपग्रह को 618 किलोमीटर प्रति सेकंड से कई गुना ज्यादा रफ्तार से छोड़ना होगा और भौतिकी का एक सिद्धांत है कि कोई भी वस्तु प्रकाश की रफ्तार से अधिक तेज नहीं चल सकती प्रकाश की रफ्तार 300000 किलोमीटर प्रति सेकंड है मतलब यह हुआ कि ब्लैक होल से किसी चीज का बाहर निकलना असंभव है ।प्रकाश की रफ्तार भी ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण बल को निरस्त करने के लिए आवश्यक रफ्तार से कम पड़ जाती है ब्लैक होल इतना भूखा होता है कि अपने पास मौजूद हर खगोलीय पिंड को वह अपनी ओर खींच लेता है ।और अंदर पहुंचते ही उस पिंड का नामो निशान मिट जाता है उसे निगलने के बाद इसकी शक्ति और बढ़ जाती है क्योंकि उसके द्रव्यमान में उस पिंड का द्रव्यमान भी जुड़ जाता है। जिससे उसका गुरुत्वाकर्षण बल पर जाता है खगोल शास्त्री मानते हैं कि ब्लैक होल ब्रह्मांड के निर्माण और अंत के संबंध में जानकारी दे सकते हैं ब्रह्मांड के निर्माण के संबंध में कई संकल्पनाएं हैं जिनमें दो प्रमुख है एक संकल्पना के अनुसार यह माना जाता है कि शुरू में ब्रह्मांड की सारी सामग्री एक विशाल खंड के रूप में मौजूद थी जिसमें आज से लगभग 14 अरब साल पहले विस्फोट हुआ जिससे सारी सामग्री पूरे अंतरिक्ष में फैल गई दरअसल फैलने की प्रक्रिया अब भी जारी है दूसरी संकल्पना के अनुसार ब्रह्मांड का उद्भव और पराभव एक लोलक के समान निरंतर चलता रहता है ब्रह्मांड के मूल पिंड में विस्फोट होता है और उसकी सामग्री फैल जाती है और जिसमें फिर विस्फोट होता है यह क्रम निरंतर चलता रहता है इस प्रक्रिया में ब्लैक होल्स की कोई अहम भूमिका हो सकती है शायद ब्लैक होल द्वारा खगोलीय पिंडो को निकले जाने से ही ब्रह्मांड के मूल पिंड का निर्माण होता है जिस में विस्फोट होने से ब्रह्मांड नए सिरे से बनता पर यह सब अभी सिर्फ हमारी कल्पना है शायद हम भविष्य में ब्लैक होल्स और ब्रह्मांड के निर्माण में इसकी भूमिका को समझ पाए आज के इस एपिसोड में बस इतना ही दोस्तों कमेंट के जरिए हमें जरूर बताएं यह पोस्ट आपको कैसा लगा। मिलते हैं एक और दिलचस्प पोस्ट के साथ।
Previous
Next Post »