एनजीटी की पर्यावरण चिंता में धर्म रक्षा भी शामिल है



राष्ट्रीय हरितपंचाट (एनजीटी) ने दक्षिण कश्मीर में 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ की गुफा में घंटा बजाने और जयकारा लगाने पर रोक लगाकर भले पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाया है लेकिन, उसके इस कदम से हिंदू धर्म के स्वयंभू ठेकेदार चिढ़ गए हैं। दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिंदर पाल बग्गा ने हिंदू विरोधी कहते हुए इसे चुनौती दे डाली है। एनजीटी के अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार ने इससे पहले अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आदेश दिया था कि वह यात्रियों को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराए। अब अमरनाथ गुफा में दिखने वाले बर्फीले शिवलिंग और आसपास केपर्यावरण की रक्षा को ध्यान में रखते हुए पंचाट ने आदेश दिया है कि वहां ध्वनि प्रदूषण के कारण हिमस्खलन का खतरा बढ़ जाता है इसलिए तो घंटा बजाया जाना चाहिए और ही जयकारातथा मंत्रोच्चार किया जाना चाहिए। पंचाट ने यात्रियों को नारियल और मोबाइल ले जाने से भी रोका है और यात्रियों के स्पष्ट दर्शन हेतु लोहे की बाड़ हटाने को भी कहा है। अदालत की इस पर्यावरण चिंता में धर्म की रक्षा अंतर्निहित है पर यह उसे ही दिखाई देगी, जो धर्म की उदार और सद्‌भावपूर्ण व्याख्या में आस्था रखता है और जिसके लिए धर्म प्रकृति का ही हिस्सा है। जिन लोगों के लिए धर्मराजनीतिक सत्ता की सीढ़ी है उन्हें यह आदेश बुरा लगा है। इसीलिए उन्होंने चुनौती दी है कि वे अमरनाथ जाएंगे और जयकारा लगाएंगे। वैसे तो सनातन धर्म के व्याख्याकार दावा करते हैं कि उसमें पर्यावरण की चिंता आदिकाल से है लेकिन जब धर्म और उसके रीति-रिवाजों को आज की पर्यावरण आवश्यकताओं के लिहाज से संवारने की बात उठती है तो धर्म के रक्षक धर्मध्वजा लेकर खड़े हो जाते हैं। पर्यावरण का दर्शन धर्म और परम्परा में भी हो सकता है और विकास के चिंतन में भी लेकिन, उसका इन दोनों से टकराव भी है। पहले विकास की राजनीति प्रबल थी और अब धर्म की राजनीति प्रबल होती जा रही है। ऐसे में पर्यावरण चिंता को या तो एनजीओ का सहारा है या फिर अदालतों का। अदालतें कभी उज्जैन के महाकालेश्वर, कभी अमरनाथ गुफा और कभी यमुना के कछार के बहाने सुविचारित आदेश दे रही हैं। इसके बावजूद अगर धार्मिक दबाव में चुकी सरकारी मशीनरी उसे नहीं मानेगी तोपर्यावरण के पास अपनी राजनीति के समय आने का इंतजार करने के अलावा कोई उपाय नहीं है।
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