सरकार ने आधार को कई जरूरी सेवाओं, खासकर बैंक खाते से जोड़ने की अंतिम तारीख बढ़ा दी है। पहले लोगों को 31 दिसंबर की तारीख दी गई थी कि तब तक वे अपने बैंक खाते से अपने आधार नंबर को जोड़ लें। अब सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से पेश हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपालन ने बताया है कि यह तारीख बढ़ाकर 31 मार्च कर दी गई है और इसके लिए जल्द ही सरकारी अधिसूचना भी जारी कर दी जाएगी। लोगों को अपने बैंक खाते के अलावा मोबाइल नंबर, बीमा पॉलिसी, भविष्य निधि खाते, पैन नंबर जैसी कई चीजों को भी आधार नंबर से जोड़ना जरूरी कर दिया गया है। इन सबके लिए अंतिम तारीख अलग-अलग है। मसलन, मोबाइल फोन को आधार नंबर से जोड़ने की आखिरी तारीख 6 फरवरी है। इन अलग-अलग तारीख कीवजह से भ्रम की स्थिति भी पैदा हो गई है, इसलिए अच्छा यही होता कि ऐसे सभी मामलों में अंतिम तारीख एक ही कर दी जाती। भ्रम किस तरह का है, यह उस समय जाहिर हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट में अटार्नी जनरल के बयान के बाद भी आधार जारी करने वाली संस्था उदय ने यही कहा कि अंतिम तारीख मेंकोई परिवर्तन नहीं किया गया है। यह ठीक है कि यह संस्था अंतिम तारीख में बदलाव की बात अधिसूचना जारी होने के बाद ही आधिकारिक रूप से कह सकती थी, लेकिन ऐसे मामलों में भ्रम से बचने के लिए जिस सावधानी की जरूरत थी, वह नहीं बरती गई।वैसे केंद्र सरकार अगर अधिसूचना जारी कर देती है, तो भी इसका अर्थ यह नहीं होगा कि सेवाओं को आधार से जोड़ने पर कोई अंतिम फैसला हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट अभी भी इस मसले पर विचार कर रहा है, जहां बहुत सारे लोगों ने ऐसी याचिकाएं दायर की हैं कि आधार से लोगों की निजता का उल्लंघन होता है। अदालत ने इस मामले की सुनवाई के लिए सांविधानिक पीठ बनाने की बात कही है। जाहिर है कि वहां यहमामला अभी लंबा चलेगा। लेकिन इस बीच सरकार ने तय किया है कि वह सेवाओं को आधार से जोड़ने के एजेंडे पर अपने तय कार्यक्रम के अनुसार ही चलेगी। यानी आपको अंतिम तारीख सेपहले ही अपने आधार नंबर को इन सेवाओं से जोड़ना पड़ेगा। इसके औचित्य की बहस इससे अलग सर्वोच्च अदालत में चलती रहेगी। अंतिम तारीख बढ़ाना सरकार की इसी योजना का एक हिस्सा भी हो सकता है, क्योंकि यह पूरा आयोजन बहुत वृहद है। ऐसा कहा जाता है कि इस समय देश की 99 फीसदी वयस्क आबादी का आधार रजिस्ट्रेशन हो चुका है और इस लिहाज से यह शायद दुनिया की सबसे बड़ी योजना भी हो। इसलिए अंतिम तारीख बढ़ाने में कुछ भी हैरत की बात नहीं है। ऐसे में, ध्यान यह रखा जाता है कि लोगों को इसके ज्यादा से ज्यादा मौके दिए जाएं।जहां तक आधार से निजता के उल्लंघन की बात है, तो यह तर्क नया नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि वह पूरी तरह से बेदम हो।अगर दुरुपयोग का थोड़ा सा भी शक हो, तो पूरी पड़ताल होनी ही चाहिए। जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट इसके लिए सबसे अच्छा मंच है। खासतौर पर इसलिए भी कि मामला नागरिक अधिकारों से जुड़ा है। सर्वोच्च अदालत पहले ही निजता को नागरिक का मूल अधिकार मान चुकी है, ऐसे में निजता के उल्लंघन का अर्थ होगा, मूल अधिकार का उल्लंघन। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहींहोगा कि पूरे के पूरे आयोजन को ही रद्द कर दिया जाए। इसका अर्थ होगा, सरकार की चुनौती का बढ़ जाना। उसे ऐसे तरीके खोजने होंगे, जिससे निजता पर भी आंच न आए और लक्ष्य भी हासिल हो जाए। यह सबके लिए अच्छा होगा- नागरिकों के लिए भी और सरकार के लिए भी।
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